दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनावी तालमेल को लेकर चल रही सियासी फिल्म का क्लाइमेक्स लगभग शूट हो चुका है, बस जनता के चुनावी थियेटर में रिलीज होना बाकी रह गया है। आम आदमी पार्टी की ओर से कई बार यह कहा जा चुका है कि अब समझौते की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं, लेकिन हकीकत ऐसा नहीं है। एनसीपी नेता शरद पवार की गेस्ट एंट्री के बाद मिल रहे संकेतों से साफ नजर आ रहा है कि इस जुगलबंदी के सारे किरदार अब राजी हैं। या यूं कहें कि दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर दोनों दलों का गठबंधन लगभग तय लग रहा है, बस हॉट सीन का खुलासा भर बाकी है।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस के तालमेल का सबसे ज्यादा मुखर विरोध प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित और उनके करीबी नेता कर रहे थे। लेकिन, अब मध्यस्थ के तौर पर एनसीपी नेता शरद पवार के कूदने के बाद उनके भी सुर बदल गए हैं। उनकी ओर से कह दिया गया है कि वो नेतृत्व का फैसला मानने के लिए बाध्य हैं। शीला के रुख में यह बदलाव तब आया, जब पवार ने कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे और आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह से अलग-अलग मुलाकात की। इस तरह से भले ही पवार गेस्ट किरदार के रूप में आए हैं, लेकिन लगता है कि उनकी एंट्री की वजह से ही कांग्रेस को अपनी रोल को लेकर कन्फ्यूजन दूर हो पाया है। क्योंकि, कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के से संकेत मिल रहे थे कि वह अरविंद केजरीवाल की पार्टी से गठबंधन के लिए तैयार है, लेकिन बुजुर्ग नेता और तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को मनाना उसके लिए बहुत मुश्किल हो रहा था।
दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर केजरीवाल के साथ तालमेल को लेकर कांग्रेस शुरू से ही कन्फ्यूजन में रही है। जब, अजय माकन को हटाकर पार्टी ने शीला दीक्षित को दिल्ली प्रदेश का जिम्मा सौंपा तो लगा कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी। जिम्मेदारी संभालने के बाद से ही शीला ने साफ कर दिया कि वो 2013 भूली नहीं हैं, जब केजरीवाल ने उनपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाकर उनकी सत्ता पलट दी थी। राहुल गांधी की ओर से दीक्षित के पास जितने बार भी संदेश आया वो अपनी राय पर कायम रहीं कि कांग्रेस को अकेले लड़ना चाहिए। उन्होंने एक साल बाद विधानसभा चुनाव का भी हवाला दिया कि अगर पार्टी ने अभी ‘आप’ से मेलजोल कर लिया तो पार्टी को लंबे समय में इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। शीला के बाकी साथी भी उनके साथ ताकत से डटे रहे। लिहाजा अरविंद केजरीवाल की ओर से लाख पैरवी के बावजूद राहुल को सार्वजनिक तौर पर गठबंधन से मना करना पड़ा।
लेकिन, इस दौरान भी कांग्रेस का एक धरा आम आदमी पार्टी से तालमेल की संभावनाएं तलाशता रहा। शीला की जानकारी के बगैर कभी बूथ लेबल कार्यकर्ताओं से शक्ति ऐप के जरिए राय मांगी गई, तो कभी आंतरिक सर्वे में आम आदमी पार्टी से तालमेल को वक्त की जरूरत बताया गया। इसको लेकर शीला भड़कीं भी, ऊपर तक शिकायत भी पहुंचा आईं, भविष्य में पार्टी को होने वाले नुकसान का भी वास्ता दिया। लेकिन, वो यह समझने के लिए तैयार नहीं हुईं कि क्या बिना कांग्रेस अध्यक्ष की सहमति के पार्टी का कोई नेता किसी तरह का सर्वे करा सकता है? राहुल को तो एक बीच का रास्ता चाहिए था, जो लगता है कि शायद पवार ने निकाल दिया है।
जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में अभी बीजेपी को 35, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को 22 सीटें मिलने का अनुमान है। इसी आधार पर दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पी सी चाको ने कहा है कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता बीजेपी को हराना अपनी पहली जिम्मेदारी समझते हैं और इसलिए वे केजरीवाल की पार्टी के साथ तालमेल के लिए तैयार हैं। उन्होंने ये भी कहा है कि वर्किंग कमिटी ने भी यही तय किया है कि जो भी बीजेपी का विरोध कर रहा है, उसके साथ गठबंधन किया जाए। दरअसल, राहुल ने पहले दिल्ली कांग्रेस के नेताओं के विरोध का हवाला देकर गठबंधन को टाल दिया था, लेकिन पुलवामा हमला और एयरस्ट्राइक के बाद राजनीतिक माहौल बदल चुका है। इसलिए, कांग्रेस अपना फैसला बदलने के लिए तैयार लग रही है। हालांकि, कांग्रेस में अभी भी कुछ लोग हैं,जो केजरीवाल की पार्टी के साथ तालमेल को आत्मघाती कह रहे हैं। जो भी हो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की स्टार कास्ट वाली पिक्चर तैयार लगती है, बस इसे रिलीज कब करना है यह फैसला कांग्रेस अध्यक्ष के हाथ है।